logo icon

Radioimmunoassay (RIA): A Revolutionary Biological Technique

About Image

रेडियोइम्यूनोएस्से (RIA) : एक क्रांतिकारी जैविक तकनीक

रेडियोइम्यूनोएस्से (Radioimmunoassay – RIA) एक संवेदनशील और अत्यंत सटीक तकनीक है, जिसका उपयोग जैविक नमूनों में हार्मोन, प्रोटीन, और अन्य अणुओं की बहुत कम मात्रा का मापन करने के लिए किया जाता है। इसे 1960 के दशक में रोसालिन यालो और सोलोमन बेरसन ने विकसित किया था। इस तकनीक के विकास के लिए रोसालिन यालो को 1977 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

रेडियोइम्यूनोएस्से की कार्यप्रणाली प्रतिजीव (Antigen) और प्रतिपिंड (Antibody) के बीच होने वाली प्रतिक्रिया पर आधारित है। इस प्रक्रिया में एक विशिष्ट प्रतिजीव को रेडियोधर्मी पदार्थ से टैग किया जाता है। जब यह रेडियोधर्मी प्रतिजीव एक सीमित मात्रा में उपलब्ध प्रतिपिंड के साथ प्रतिक्रिया करता है, तब प्रतिजीव और प्रतिपिंड के बीच प्रतिस्पर्धा होती है। जिस नमूने में अधिक मात्रा में अज्ञात प्रतिजीव (जैसे हार्मोन) होता है, वह रेडियोधर्मी प्रतिजीव की जगह ले लेता है और प्रतिक्रिया में कमी आ जाती है। इस प्रकार, रेडियोधर्मी सिग्नल की माप करके, हम नमूने में अज्ञात पदार्थ की मात्रा का अनुमान लगा सकते हैं।

सबसे पहले, उस पदार्थ को रेडियोधर्मी पदार्थ (जैसे आयोडीन-125) से टैग किया जाता है, जिसका परीक्षण किया जाना है।इस रेडियोधर्मी प्रतिजीव को एक निश्चित मात्रा के साथ मिलाया जाता है, जो एक ज्ञात मात्रा में प्रतिपिंड के साथ प्रतिक्रिया करता है। जब अज्ञात नमूने को इस मिश्रण में जोड़ा जाता है, तो अज्ञात प्रतिजीव और रेडियोधर्मी प्रतिजीव प्रतिपिंड से जुड़ने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। इस प्रतिक्रिया के बाद, रेडियोधर्मी सिग्नल का मापन किया जाता है। जितना अधिक अज्ञात पदार्थ मौजूद होगा, उतना ही कम रेडियोधर्मी सिग्नल प्राप्त होगा।रेडियोइम्यूनोएस्से का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे कि इंसुलिन, थायरॉइड हार्मोन, एड्रेनालाईन आदि की माप, HIV, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों के निदान में, दवाओं की रक्त में उपस्थिति को मापने के लिए,  कुछ विशेष प्रकार के कैंसर मार्करों का पता लगाने में इत्यादि।

रेडियोइम्यूनोएस्से नैनोग्राम स्तर पर भी जैविक पदार्थों का पता लगा सकता है।यह तकनीक बहुत ही विशिष्ट होती है, क्योंकि यह प्रतिजीव-प्रतिपिंड की विशेष प्रतिक्रिया पर आधारित होती है। रेडियोइम्यूनोएस्से को केवल बहुत कम मात्रा में नमूना की आवश्यकता होती है। रेडियोधर्मी सामग्री के उपयोग के कारण विशेष सुरक्षा प्रोटोकॉल की आवश्यकता होती है। यह महंगी तकनीक है, जिसके लिए विशेष उपकरण और कुशल कर्मियों की आवश्यकता होती है।

रेडियोइम्यूनोएस्से ने जैविक और चिकित्सा विज्ञान में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है। यह तकनीक आज भी कई क्षेत्रों में उपयोग की जाती है, हालांकि नई गैर-रेडियोधर्मी तकनीकों के विकास के कारण इसका उपयोग कुछ हद तक कम हो गया है। फिर भी, इसकी संवेदनशीलता और सटीकता इसे एक मूल्यवान उपकरण बनाती है। यह तकनीक विज्ञान और चिकित्सा जगत में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई है और कई बीमारियों के निदान और उपचार में सहायक रही है।इस प्रक्रिया की सफलतापूर्वक क्रियान्वयन में मेडिकल लैब टेक्निशियनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।

रेडियोइम्यूनोएस्से के परिणामों की सटीकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए उन्हें उच्च स्तरीय तकनीकी कौशल और ज्ञान की आवश्यकता होती है। मेडिकल लैब टेक्निशियन सबसे पहले रोगी से रक्त, मूत्र या अन्य जैविक नमूने एकत्र करते हैं। नमूने को सही तरीके से संग्रहित और तैयार करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी त्रुटि से परिणाम प्रभावित हो सकते हैं। नमूनों को सही तापमान और शर्तों में रखना भी उनकी ज़िम्मेदारी होती है।

रेडियोइम्यूनोएस्से प्रक्रिया में रेडियोधर्मी आइसोटोप (जैसे आयोडीन-125) का उपयोग किया जाता है। मेडिकल लैब टेक्निशियन को रेडियोधर्मी पदार्थों को संभालने और उनके साथ काम करने में विशेष सावधानी बरतनी होती है। उन्हें सुरक्षा प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करना पड़ता है ताकि रेडिएशन एक्सपोजर से खुद और अन्य लोगों को बचाया जा सके।

टेक्निशियन रेडियोइम्यूनोएस्से प्रक्रिया में प्रयोग किए जाने वाले रेडियोधर्मी प्रतिजीव (Antigen) और प्रतिपिंड (Antibody) की उचित मात्रा निर्धारित करते हैं और उन्हें सही ढंग से मिलाते हैं। इस चरण में सही मात्रा और अनुक्रम बेहद ज़रूरी होता है, ताकि सटीक परिणाम प्राप्त किए जा सकें। मेडिकल लैब टेक्निशियन विशेष उपकरणों का उपयोग करते हैं, जैसे कि गामा काउंटर, ताकि रेडियोधर्मी विकिरण के स्तर को मापा जा सके। इस माप के आधार पर ही प्रतिजीव की मात्रा का पता चलता है।सिग्नल मापने के बाद, लैब टेक्निशियन को प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करना होता है। इस डेटा को समझकर, वे परिणामों की व्याख्या करते हैं और डॉक्टरों के लिए रिपोर्ट तैयार करते हैं। सही विश्लेषण और सटीक रिपोर्टिंग रोगी के निदान और उपचार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

रेडियोइम्यूनोएस्से तकनीक की संवेदनशीलता और सटीकता को बनाए रखने के लिए, लैब टेक्निशियन को नियमित रूप से उपकरणों का कैलिब्रेशन करना होता है। इसके साथ ही, वे गुणवत्ता नियंत्रण के विभिन्न उपायों का पालन करते हैं, जैसे कि नियंत्रण नमूनों का उपयोग और प्रक्रिया के दौरान त्रुटियों की निगरानी। रेडियोधर्मी पदार्थों का उपयोग होने के कारण, मेडिकल लैब टेक्निशियनों को कई सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करना आवश्यक होता है। इसमें व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (PPE) का उपयोग, रेडिएशन मॉनिटरिंग, और सुरक्षित अपशिष्ट निपटान शामिल होता है। उन्हें यह सुनिश्चित करना होता है कि रेडियोधर्मी सामग्री के संपर्क में आने वाले सभी उपकरण और वस्त्र सुरक्षित ढंग से निष्पादित किए जाएं।

मेडिकल लैब टेक्निशियनों को रेडियोइम्यूनोएस्से तकनीक के लिए विशेष प्रशिक्षण और अनुभव की आवश्यकता होती है। उन्हें रेडियोधर्मी पदार्थों के साथ काम करने के लिए विशेष लाइसेंस या प्रमाणपत्र की भी आवश्यकता हो सकती है। इसके अलावा, उन्हें नई तकनीकों और उपकरणों के साथ अद्यतित रहना होता है, ताकि वे अधिकतम सटीकता के साथ प्रक्रिया का निष्पादन कर सकें।

रेडियोइम्यूनोएस्से जैसी उन्नत जैविक तकनीक के क्रियान्वयन में मेडिकल लैब टेक्निशियनों की भूमिका न केवल तकनीकी विशेषज्ञता की मांग करती है, बल्कि उन्हें सुरक्षा, सटीकता, और गुणवत्ता नियंत्रण में भी विशेष ध्यान देना होता है। उनकी मेहनत और कौशल से ही चिकित्सा प्रक्रियाओं में सही निदान और उपचार संभव हो पाता है, जिससे रोगियों की देखभाल में सुधार होता है।

Recent Blogs

April 24, 2016

फ्लेबोटोमी में भरें करियर की उड़ान

Read More
September 16, 2017

आधुनिक चिकित्सा जगत में मेडिकल लैब टेक्निशियन का महत्व

Read More
September 16, 2017

Career in Radio-Imaging Technology

Read More
September 18, 2017

इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी / ECG) तकनीशियन में सवारें अपना करियर

Read More
September 18, 2017

मेडिकल के क्षेत्र में रीढ़ की हड्डी है पैरामेडिकल साइंस

Read More

DELHI PARAMEDICAL & MANAGEMENT INSTITUTE (DPMI)